
आरोपी विपिन कुमार को शिक्षक पद का नियुक्ति पत्र उस समय सौंपा गया जब वह पुलिस अभिरक्षा में हथकड़ी पहने हुए था
गया: बिहार के गया जिले से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जहां एक युवक को शिक्षक पद का नियुक्ति पत्र उस समय सौंपा गया जब वह पुलिस अभिरक्षा में हथकड़ी पहने हुए था। आरोपी विपिन कुमार, जो पिछले 18 महीनों से पटना के बेऊर जेल में बंद है, ने जेल में रहते हुए बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की परीक्षा पास की और अब बिहार सरकार ने उन्हें विद्यालय शिक्षक पद के लिए नियुक्त किया है।
रविवार को बोधगया स्थित महाबोधि सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में जब हथकड़ी पहने विपिन कुमार मंच पर पहुंचे, तो यह नजारा देख वहां मौजूद लोग हैरान रह गए। समारोह में बिहार सरकार के उद्योग मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री नीतीश मिश्रा, प्रमंडलीय आयुक्त प्रेम सिंह मीणा, गया डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज
गया जिले के मोहनपुर थाना क्षेत्र के एरकी गांव निवासी विपिन कुमार दानापुर स्थित एक कोचिंग संस्थान में शिक्षक थे। करीब डेढ़ साल पहले उसी कोचिंग में पढ़ने वाली एक नाबालिग छात्रा ने उनके खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत मामला दर्ज कराया था। इसके बाद पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया और तब से वह न्यायिक हिरासत में हैं।
जेल में रहकर पास की BPSC परीक्षा
जेल में रहते हुए भी विपिन कुमार ने पढ़ाई जारी रखी और कड़ी मेहनत के बाद बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की शिक्षक भर्ती परीक्षा पास की। इसके बाद उनका चयन कक्षा 1 से 5 तक सामान्य विषय के शिक्षक पद के लिए हुआ।
नियुक्ति पर बना रहेगा संशय
विपिन कुमार ने खुद बताया कि उनके खिलाफ मामला अभी न्यायालय में लंबित है। जब तक अदालत उन्हें निर्दोष नहीं ठहराती, तब तक उनकी नियुक्ति पर संकट बना रहेगा। अगर अदालत उन्हें दोषी करार देती है, तो उनकी नौकरी रद्द कर दी जाएगी।
आरोपी का दावा – “मुझ पर लगे आरोप बेबुनियाद”
विपिन कुमार का कहना है कि उन पर लगे आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं और उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। उन्होंने कहा कि जेल में पढ़ाई करने वाले अन्य कैदियों को भी शिक्षा की रोशनी से रोशन करेंगे।
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क्या कहना है प्रशासन का?
इस पूरे मामले को लेकर प्रशासन का कहना है कि नियमों के तहत किसी भी चयनित उम्मीदवार को तब तक नियुक्ति दी जाती है जब तक वह कानूनी रूप से अयोग्य नहीं ठहराया जाता। हालांकि, यदि अदालत आरोपी को दोषी साबित करती है, तो नियुक्ति तत्काल रद्द कर दी जाएगी।
समाज में उठ रहे सवाल
इस मामले ने कई नैतिक और प्रशासनिक सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर, यह घटना बताती है कि कठिन परिस्थितियों में भी मेहनत से सफलता हासिल की जा सकती है, लेकिन दूसरी ओर, जब किसी पर गंभीर आरोप हों, तो क्या उसे इस तरह की सार्वजनिक सेवा में शामिल करना उचित है? सरकार को ऐसे मामलों में अधिक स्पष्ट नीति बनाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इस तरह की विवादित नियुक्तियों से बचा जा सके।
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— fenkmat (@fenkmat) March 11, 2025